क्या आपका स्मार्टफोन जानता है आपके मानसिक स्वास्थ्य का राज? नए शोध में खुलासा!

खबर सार :-
नए शोध के अनुसार, स्मार्टफोन सेंसर डेटा (कदम, नींद, सोशल एक्टिविटी) से मानसिक विकारों का पता लगाया जा सकता है। 557 लोगों के अध्ययन में पाया गया कि कम चलना, देर तक सोना और कम बातचीत करना डिप्रेशन/एंग्जाइटी के संकेत हो सकते हैं। यह तकनीक भविष्य में जल्दी निदान में मददगार हो सकती है।

क्या आपका स्मार्टफोन जानता है आपके मानसिक स्वास्थ्य का राज? नए शोध में खुलासा!
खबर विस्तार : -

आधुनिक जीवनशैली में स्मार्टफोन सिर्फ एक डिवाइस की भूमिका ही नहीं निभाता बल्कि वह हमारे दैनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनता जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपका फोन न सिर्फ आपकी शारीरिक गतिविधियों पर नज़र रखता है, बल्कि आपके ’मानसिक स्वास्थ्य’ को लेकर भी संकेत देता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ’स्मार्टफोन सेंसर डेटा’ ’डिप्रेशन, एंग्जाइटी और अन्य मानसिक विकारों’ के शुरुआती लक्षणों को पकड़ कर उसके संकेत भी दे सकता है।  

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि कई अलग-अलग मानसिक विकारों के व्यवहार समान होते हैं, इनमें से कुछ व्यवहार होते हैं जैसे, घर पर अधिक समय बिताना, देर तक सोना और फोन को बार-बार चार्ज न करना। ऐसे व्यवहार किसी व्यक्ति के ‘पी-फैक्टर’ नामक किसी चीज के स्तर को दर्शा सकते हैं, जो कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा होता है।

जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित हुए एक शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि कुछ व्यवहार, जैसे कम फोन कॉल करना या कम चलना, कम सामाजिक होने या बीमार महसूस करने जैसी विशेष समस्याओं से मेल खाते हैं।

स्मार्टफोन डेटा कैसे बताता है मन की हालत?

मिशिगन यूनिवर्सिटी, मिनेसोटा यूनिवर्सिटी और पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में ’557 वयस्कों’ के फोन सेंसर डेटा का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि ’नींद के पैटर्न, शारीरिक गतिविधि, फोन यूज की आदतें और सोशल इंटरैक्शन’ में बदलाव मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकते हैं।  

प्रमुख संकेत

  • कम सामाजिक गतिविधियां (कम कॉल/मैसे): डिप्रेशन या सामाजिक चिंता का संकेत।  
  • घर पर ज्यादा समय बिताना और कम चलना-फिरनाः एंग्जाइटी या अवसाद से जुड़ा हो सकता है।  
  • अनियमित नींद का पैटर्नः बाइपोलर डिसऑर्डर या अनिद्रा का संकेत दे सकता है।  

पी-फैक्टर क्या है?

शोध में ’पी-फैक्टर (Psychopathology Factor)’ का जिक्र किया गया है, जो ’विभिन्न मानसिक विकारों के साझा लक्षणों’ को दर्शाता है। इसके अनुसार, जिन लोगों में यह फैक्टर अधिक होता है, उनमें ’नींद की समस्या, सामाजिक अलगाव और ऊर्जा की कमी’ जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।  

क्यों मायने रखती है यह खोज?

शीघ्र निदानः फोन डेटा के आधार पर मानसिक समस्याओं का पता चल सकता है। 
बेहतर ट्रीटमेंटः डॉक्टर्स को सटीक उपचार देने में मदद मिलेगी।
​​​​​​​निजी और सस्ता तरीकाः लैब टेस्ट से बेहतर, क्योंकि यह रोजमर्रा के डेटा पर आधारित है।

चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं

हालांकि यह तकनीक बेहद उपयोगी है, लेकिन इस पर और शोध की आवश्यकता है। एक बड़ी चुनौती यह है कि ’कई मानसिक विकारों के लक्षण ओवरलैप’ करते हैं, जिससे सटीक पहचान करना मुश्किल होता है। फिर भी, ’डिजिटल थेरेपी’ के क्षेत्र में यह एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है।  

स्मार्टफोन अगर हमारी ’फिजिकल हेल्थ’ (स्टेप काउंट, हार्ट रेट) ट्रैक कर सकता है, तो ’मेंटल हेल्थ’ क्यों नहीं? भविष्य में AI और सेंसर टेक्नोलॉजी’ के जरिए हम ’मेंटल हेल्थ अलर्ट सिस्टम’ बना सकते हैं, जो समस्या बढ़ने से पहले ही चेतावनी देगा। अभी यह शोध अपनी शुरुआती अवस्था में है, लेकिन इसकी संभावनाएं अनंत हैं।